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भारत का राज्य राजस्थान जो मशहूर है अपनी संस्कृतिक धरोहर, रेगिस्तान, पर्यटन और अपने राजस्थानी व्यंजनों के उत्कृष्ट स्वाद के लिए. लेकिन अपनी इस सुनहरी धरती पर राजस्थान के जैसलमेर जिले में एक ऐसा गांव जो 200 साल से वीरान पड़ा है. आखिर क्या हुआ था कुलधरा में, और क्या है इस गांव का इतिहास. आइए आज जानते हैं कहानी राजस्थान के कुलधरा गांव की. आगे बढ़ने से पहले नीचे दिए गए Bell आइकन को क्लिक कीजिए और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूले.
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ऐसा माना जाता है कि इस गांव में रहने वाले लोग लगभग 200 साल पहले अचानक एक रात को अपना गांव छोड़कर कहीं और चले गए और फिर किस गांव में कभी वापस नहीं आए.
कुलधरा गांव वर्तमान में पुरातत्व विभाग की निगरानी में है. इतिहासकारों और स्थानीय लोगों के अनुसार 200 साल पहले जब जैसलमेर रजवाड़ों की एक रियासत थी उस समय कुलधरा गांव उस रियासत का सबसे खुशहाल गांव था. कुलधरा गांव की अपनी एक संस्कृति की और यहां के अलग उत्सव और नृत्य व संगीत समारोह भी थे.
प्राचीन व स्थानीय लोगों के अनुसार इस गांव में अधिकतर पालीवाल ब्राह्मण रहते थे. गांव की एक लड़की की शादी होने वाली थी जिसके बारे में कहा जाता था कि वह बहुत खूबसूरत थी.
लेकिन जैसलमेर रियासत के दीवान सालिम सिंह की नजर उस लड़की पर पड़ गई और उसे उसकी सुंदरता से प्यार हो गया और उसने उस लड़की से शादी करने की जिद की. प्रचलित कहानियों के अनुसार जालिम सिंह एक अत्याचारी क्रूर शासक था जिसकी क्रूरताओं की कहानियां आसपास के इलाकों में भी मशहूर थी. इन सबके चलते कुलधरा गांव के लोगों ने सालिम सिंह को लड़की का रिश्ता देने से मना कर दिया.
जैसा सालिम सिंह का व्यक्तित्व था उसने गांव वालों को इस बारे में सोचने के लिए थोड़ा समय दिया. गांव वाले जानते थे कि अगर उन्होंने सालिम सिंह की बात नहीं मानी तो वह गांव में सभी का कत्ल कर देगा.
गांव की परंपरा के अनुसार कुलधरा के लोगों ने गांव में मंदिर के पास स्थित एक चौपाल में पंचायत बिठाई और अपने गांव और अपनी बेटी का सम्मान बचाने के लिए उस गांव को हमेशा के लिए छोड़ देने का फैसला कर लिया.
ऐसा माना जाता है कि सारे गांव वाले रात के सन्नाटे में अपना सारा सामान मवेशी अनाज और कपड़े लेकर अपने घरों को छोड़कर हमेशा के लिए वहां से चले गए और फिर कभी वापस नहीं आए.
जैसलमेर में आज भी सालिम सिंह की हवेली मौजूद है लेकिन उसे देखने कोई नहीं जाता है.
यदि आप कुलधरा गांव को कभी नजदीक से देखने जाएंगे तो वहां आपको कई लाइनों में बने पत्थर के मकान जो कि अब खंडहर बन चुके हैं वह दिखाई देंगे. लेकिन इन खंडहरों को गौर से देखने पर आप इन खंडहरों में इस गांव के अतीत के समृद्ध होने का पता लगा सकते हैं.
कुछ घरों में चूल्हे बैठने की जगह और घड़े रखने की जगह की मौजूदगी से ऐसा लगता है कि जैसे अभी भी वहां कोई रह रहा हो. लेकिन अब वह पूरा गांव सिर्फ सन्नाटे की चपेट में है.
आसपास के लोग बड़ों से सुनी हुई बातें बताते हैं कि रात के सन्नाटे में कुलधरा के खंडहरों में आज भी किसी के कदमों की आहट सुनाई देती है.
स्थानीय लोगों में यह मान्यता भी काफ़ी मशहूर है कि कुलधरा के लोगों की आत्माएं आज भी यहां भटकती हैं.राजस्थान सरकार ने इस गांव को पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यहां के कुछ घरों को पहले की तरह बहाल कर दिया है. गांव का मंदिर आज भी गुज़रे हुए वक़्त के गवाह की तरह अपनी जगह पर खड़ा है.
हर साल हजारों पर्यटक इस गांव को देखने के लिए यहां आते हैं. यहां के स्थानीय लोग इस गांव का बहुत सम्मान करते हैं.एक और मान्यता यह भी मशहूर है कि जब कुलधरा के लोग इस गांव को छोड़कर जा रहे थे, तो उस समय उन्होंने यह श्राप दिया था कि यह गांव कभी नहीं बसेगा.
उनके जाने के दो सौ साल बाद आज भी यह गांव जैसलमेर के रेगिस्तान में वीरान पड़ा है.
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